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हजारीबाग जेल कांड के नायक -पार्थ ब्रह्मचारी , जिनके नाम से कांपते थे अंग्रेज अफसर

उत्तर बिहार के क्रांतिवीर : पार्थ ब्रह्मचारी (1885–2002)

हजारीबाग जेल कांड के नायक, जिनके नाम से कांपते थे अंग्रेज अफसर

भागलपुर। बिहार की मिट्टी हमेशा से वीर सपूतों की जन्मभूमि रही है। इन्हीं महान सपूतों में एक नाम है क्रांतिकारी पार्थ ब्रह्मचारी जी का। भागलपुर जिले के बिहपुर थाना क्षेत्र के नन्हकार-जयरामपुर गांव में जन्मे ब्रह्मचारी जी का जीवन त्याग, साहस और तपस्या की अद्वितीय गाथा है।

हजारीबाग जेल कांड : जब कांप उठा ब्रिटिश साम्राज्य

क्रांतिकारी आंदोलन में सियाराम सिंह और पार्थ ब्रह्मचारी की जोड़ी पूरे इलाके में मशहूर थी। लेकिन असली पहचान उन्हें तब मिली जब उन्होंने इतिहास रच दिया। डॉ. राममनोहर लोहिया और लोकनायक जयप्रकाश नारायण को ब्रिटिश सरकार ने हजारीबाग जेल में कठोर सुरक्षा घेरे में बंद कर रखा था। मगर ब्रह्मचारी जी और उनके साथियों ने असंभव को संभव कर दिखाया। रात के अंधेरे में जेल की ऊँची दीवारें लांघकर दोनों नेताओं को आज़ाद कराया। इस दुस्साहसी कांड ने ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला दीं और पार्थ ब्रह्मचारी का नाम क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास में अमर हो गया।

कुश्ती, योग और तपस्या से बना ‘ब्रह्मचारी’ नाम

पार्थ जी कुश्ती और योग के माहिर थे। उनका जीवन अनुशासन और संयम का प्रतीक था। देशसेवा में इतना रमे रहे कि लगभग 60 वर्ष तक विवाह नहीं किया। इसी कारण लोग उन्हें सम्मान से ‘ब्रह्मचारी’ कहने लगे। बाद में चिकित्सकों की सलाह पर विवाह किया, लेकिन उनका जीवन अंत तक समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित रहा।

आज़ादी के बाद का जीवन : राजनीति से दूर, सेवा में समर्पित

देश स्वतंत्र होने के बाद ब्रह्मचारी जी कटिहार में बस गए। उन्होंने सत्ता और राजनीति का मोह नहीं पाला। वे युवाओं को प्रेरित करते रहे, समाजसेवा में सक्रिय रहे और अपने क्रांतिकारी व्यक्तित्व को जिंदा रखा।

117 वर्षों का गौरवशाली सफ़र

1885 में जन्मे और 2002 में देहांत हुए पार्थ ब्रह्मचारी जी ने 117 वर्षों का लंबा जीवन जिया। उनके शौर्य और त्याग की कहानियाँ आज भी बिहपुर की धरती गुनगुनाती है। वे केवल एक क्रांतिकारी नहीं, बल्कि उत्तर बिहार के स्वाभिमान, त्याग और आज़ादी की लौ के सजीव प्रतीक थे।

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